भारत में प्लास्टिक से एक लाख मौतें: DEHP केमिकल से कई गंभीर बीमारियों का रिस्क
प्लास्टिक आज हमारी जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। पानी की बोतल से लेकर खाने के कंटेनर, खिलौने, और यहाँ तक कि चाय की छलनी तक—हर जगह प्लास्टिक है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यही प्लास्टिक, जो सुविधा देता है, भारत में हर साल लाखों लोगों की जान भी ले रहा है? प्लास्टिक प्रदूषण से भारत में स्वास्थ्य जोखिम अब एक गंभीर संकट बन चुका है, और इसका सबसे खतरनाक पहलू है DEHP केमिकल के खतरे। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी (NYU) के एक अध्ययन के अनुसार, 2018 में DEHP के कारण भारत में 1 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई। यह आंकड़ा चौंकाने वाला है और हमें जागरूक होने की जरूरत है।
हम बात करेंगे कि DEHP क्या है, यह हमारे शरीर में कैसे पहुंचता है, और इससे होने वाली गंभीर बीमारियों से कैसे बचा जा सकता है। साथ ही, हम भारत में प्लास्टिक प्रदूषण के स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभावों पर भी गहराई से चर्चा करेंगे। तो चलिए, इस जानलेवा संकट को समझते हैं और जानते हैं कि आप और आपका परिवार इससे कैसे सुरक्षित रह सकता है।
DEHP क्या है?
DEHP, यानी डाय-2-एथाइलहेक्सिल फ्थेलेट, एक रसायन है जो प्लास्टिक को मुलायम और लचीला बनाने के लिए इस्तेमाल होता है। यह फ्थेलेट्स नामक रसायनों के परिवार का हिस्सा है। आप इसे रोजमर्रा की चीजों में पा सकते हैं, जैसे:
- प्लास्टिक की बोतलें: खासकर पानी और सॉफ्ट ड्रिंक की बोतलें।
- खाद्य पैकेजिंग: खाने के डिब्बे, रैप, और कंटेनर।
- चिकित्सा उपकरण: IV बैग और ट्यूब।
- बच्चों के खिलौने: सस्ते प्लास्टिक के खिलौने।
- कॉस्मेटिक्स और घरेलू सामान: कुछ क्रीम, परफ्यूम, और प्लास्टिक फर्नीचर।
भारत में फ्थेलेट्स केमिकल का स्वास्थ्य पर प्रभाव गंभीर है क्योंकि DEHP पानी या हवा में आसानी से नहीं घुलता, लेकिन यह गर्मी, धूप, या लंबे समय तक इस्तेमाल के कारण प्लास्टिक से निकलकर भोजन, पानी, या हवा के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश कर सकता है। यह रसायन प्लास्टिक पैकेजिंग से DEHP केमिकल का खतरा बढ़ाता है, खासकर जब आप गर्म खाना या पेय पदार्थ प्लास्टिक में रखते हैं।
NYU के अध्ययन के अनुसार, DEHP प्लास्टिक केमिकल DEHP से मौत का खतरा को बढ़ाता है, खासकर हृदय रोगों और कैंसर जैसी बीमारियों के कारण। यह बच्चों, गर्भवती महिलाओं, और बुजुर्गों के लिए विशेष रूप से खतरनाक है।
DEHP ऐसे पहुंचता शरीर के अंदर
आप सोच रहे होंगे कि यह DEHP हमारे शरीर में आता कैसे है? यह कोई जटिल प्रक्रिया नहीं है—यह हमारी रोजमर्रा की आदतों का हिस्सा है। प्लास्टिक प्रदूषण और हार्ट अटैक का जोखिम बढ़ाने वाला यह रसायन इन तरीकों से हमारे शरीर में प्रवेश करता है:
- खाद्य और पेय पदार्थों के जरिए: जब आप प्लास्टिक की बोतल में पानी पीते हैं या प्लास्टिक कंटेनर में गर्म खाना रखते हैं, DEHP भोजन या पानी में मिल सकता है। खासकर, भारत में सिंगल यूज प्लास्टिक के स्वास्थ्य जोखिम इस कारण बढ़ते हैं क्योंकि लोग बार-बार ऐसी बोतलों का इस्तेमाल करते हैं।
- हवा के जरिए: प्लास्टिक कचरे को जलाने से DEHP जैसे रसायन हवा में फैलते हैं। भारत में, जहाँ प्लास्टिक कचरे से भारत में मौत के आंकड़े बढ़ रहे हैं, यह एक बड़ी समस्या है।
- त्वचा के संपर्क से: कॉस्मेटिक्स, खिलौनेiol, और कुछ प्लास्टिक प्रोडक्ट्स के संपर्क से DEHP त्वचा के जरिए अवशोषित हो सकता है।
- माइक्रोप्लास्टिक्स: भारत में प्लास्टिक कचरे से हृदय रोग की समस्या बढ़ रही है क्योंकि माइक्रोप्लास्टिक्स (प्लास्टिक के छोटे कण) भोजन, पानी, और हवा के जरिए हमारे शरीर में पहुंचते हैं। ये कण DEHP जैसे रसायनों को ले जा सकते हैं।
एक बार शरीर में प्रवेश करने के बाद, DEHP हमारे हार्मोन्स को प्रभावित करता है, जिससे भारत में प्लास्टिक प्रदूषण से हार्मोनल असंतुलन की समस्या हो सकती है। यह हृदय, लीवर, किडनी, और प्रजनन प्रणाली को नुकसान पहुंचाता है।
DEHP के खतरे: गंभीर बीमारियों का जोखिम
DEHP के कारण प्लास्टिक केमिकल से भारत में गंभीर बीमारियां बढ़ रही हैं। आइए, इसके प्रमुख खतरों पर नजर डालें:
- हृदय रोग: DEHP केमिकल के खतरे और हृदय रोग का गहरा संबंध है। DEHP धमनियों में सूजन पैदा करता है, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण और हार्ट अटैक का जोखिम बढ़ता है। NYU के अध्ययन के अनुसार, 2018 में DEHP से जुड़ी हृदय बीमारियों के कारण विश्वभर में 3.56 लाख मौतें हुईं, जिनमें भारत का हिस्सा सबसे ज्यादा था।
- कैंसर: DEHP केमिकल से भारत में कैंसर का खतरा भी बढ़ता है। यह रसायन लीवर, स्तन, और फेफड़ों के कैंसर से जुड़ा है। खासकर, बिना ISI मार्क वाले प्लास्टिक प्रोडक्ट्स में यह खतरा ज्यादा होता है।
- हार्मोनल असंतुलन: DEHP अंतःस्रावी तंत्र को बाधित करता है, जिससे थायरॉइड, मोटापा, और बांझपन जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। भारत में प्लास्टिक प्रदूषण से हार्मोनल असंतुलन खासकर महिलाओं और बच्चों में देखा गया है।
- बच्चों पर प्रभाव: DEHP केमिकल से बच्चों के स्वास्थ्य पर खतरा बहुत ज्यादा है। यह विकासात्मक समस्याएँ, जैसे सीखने में कठिनाई और व्यवहार संबंधी समस्याएँ, पैदा कर सकता है। गर्भवती महिलाओं के लिए यह भ्रूण के विकास को प्रभावित कर सकता है।
- अन्य बीमारियाँ: DEHP किडनी और लीवर को नुकसान, पाचन तंत्र में जलन, और इम्यून सिस्टम की कमजोरी का कारण बन सकता है।
प्लास्टिक कचरे से भारत में मौत के आंकड़े बताते हैं कि यह समस्या अब केवल पर्यावरणीय नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य का संकट बन चुकी है।
DEHP के खतरे से बचना जरूरी
अच्छी खबर यह है कि आप कुछ आसान कदम उठाकर DEHP केमिकल और भारत में पर्यावरण संकट से खुद को और अपने परिवार को बचा सकते हैं। यहाँ कुछ प्रैक्टिकल टिप्स दिए गए हैं:
- प्लास्टिक का कम इस्तेमाल करें:
- सिंगल-यूज प्लास्टिक, जैसे डिस्पोजेबल ग्लास, स्ट्रॉ, और थैलियों का उपयोग बंद करें।
- स्टील, कांच, या मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल करें।
- हमारा Beginner’s Guide to Composting पढ़ें और जानें कि कैसे आप प्लास्टिक कचरे को कम कर सकते हैं।
- सही प्लास्टिक चुनें:
- खाने-पीने की चीजों के लिए PET, HDPE, LDPE, या PP कैटेगरी के प्लास्टिक का इस्तेमाल करें। ये फूड-ग्रेड प्लास्टिक हैं और अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं।
- PDVC, PS, या ‘O’ कैटेगरी के प्लास्टिक से बचें, क्योंकि ये गर्म होने पर खतरनाक रसायन छोड़ते हैं।
- प्लास्टिक को गर्म न करें:
- प्लास्टिक कंटेनर में खाना माइक्रोवेव न करें।
- धूप में रखी प्लास्टिक बोतल का पानी न पिएँ, क्योंकि गर्मी से DEHP पानी में मिल सकता है।
- रिसाइक्लिंग को अपनाएँ:
- इस्तेमाल किए गए प्लास्टिक को रिसाइक्लिंग सेंटर में दें, न कि जलाएँ। जलाने से जहरीले रसायन हवा में फैलते हैं।
- जागरूकता बढ़ाएँ:
- अपने परिवार और दोस्तों को भारत में सिंगल यूज प्लास्टिक के स्वास्थ्य जोखिम के बारे में बताएँ।
- BPA-मुक्त और उच्च-गुणवत्ता वाले बच्चों के खिलौने और प्रोडक्ट्स चुनें।
- प्राकृतिक विकल्प अपनाएँ:
- कॉस्मेटिक्स खरीदते समय इंग्रीडिएंट लिस्ट चेक करें और फ्थेलेट्स-मुक्त प्रोडक्ट्स चुनें।
- कपड़े के बैग और बांस के स्ट्रॉ जैसे पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों को अपनाएँ।
इन छोटे-छोटे बदलावों से आप प्लास्टिक प्रदूषण से भारत में स्वास्थ्य जोखिम को काफी हद तक कम कर सकते हैं।
भारत में प्लास्टिक प्रदूषण: एक बड़ा संकट
DEHP केमिकल और भारत में पर्यावरण संकट को समझने के लिए हमें प्लास्टिक प्रदूषण की व्यापक समस्या को देखना होगा। भारत में हर साल करीब 56 लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है, जिसमें से केवल 9,205 टन ही रिसाइकल होता है। बाकी कचरा नदियों, समुद्रों, और लैंडफिल में जमा हो जाता है, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण से भारत में स्वास्थ्य जोखिम बढ़ता है।
- जल प्रदूषण: प्लास्टिक कचरा नदियों और समुद्रों में मिलकर पानी को दूषित करता है। माइक्रोप्लास्टिक्स मछलियों के शरीर में प्रवेश करते हैं, जो खाद्य श्रृंखला के जरिए इंसानों तक पहुंचते हैं।
- वायु प्रदूषण: प्लास्टिक को जलाने से डायोक्सिन जैसे जहरीले रसायन हवा में फैलते हैं, जो DEHP केमिकल से भारत में कैंसर का खतरा बढ़ाते हैं।
- मिट्टी की उर्वरता: प्लास्टिक कचरा मिट्टी को बंजर बनाता है, जिससे खेती और पर्यावरण को नुकसान होता है।
- समुद्री जीवन: हर साल लाखों समुद्री जीव प्लास्टिक खाने या उसमें फंसने से मर जाते हैं।
भारत सरकार ने सिंगल-यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की है, लेकिन इसे लागू करना चुनौतीपूर्ण रहा है। प्लास्टिक कचरे से भारत में मौत के आंकड़े को कम करने के लिए हमें व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर कदम उठाने होंगे।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि प्लास्टिक केमिकल से भारत में गंभीर बीमारियां अब एक महामारी का रूप ले रही हैं। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के प्रो. डॉ. डी. हिमांशु रेड्डी कहते हैं, “प्लास्टिक कास्नोजेनिक है, यानी यह कैंसर का कारण बन सकता है। हमें ISI मार्क और कोड देखकर ही प्लास्टिक प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करना चाहिए।”
फोर्टिस अस्पताल के मेडिकल ऑन्कोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. मंगेश कामत के अनुसार, “रिसाइकल किए गए प्लास्टिक कंटेनर, खासकर काले प्लास्टिक, भोजन में जहरीले रसायन छोड़ सकते हैं, जिससे कैंसर का खतरा बढ़ता है।”
ये चेतावनियाँ हमें बताती हैं कि DEHP केमिकल से बच्चों के स्वास्थ्य पर खतरा और बड़ों की सेहत को बचाने के लिए तुरंत एक्शन लेना जरूरी है।
एक स्वस्थ भविष्य की ओर कदम
भारत में प्लास्टिक से एक लाख मौतें कोई छोटी संख्या नहीं है। DEHP केमिकल के खतरे और हृदय रोग, कैंसर, और हार्मोनल असंतुलन जैसे जोखिम हमें यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या हम सुविधा के लिए अपनी सेहत को दांव पर लगा सकते हैं? जवाब है—नहीं।
आपके छोटे-छोटे प्रयास, जैसे प्लास्टिक का कम इस्तेमाल, रिसाइक्लिंग को बढ़ावा देना, और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प अपनाना, न केवल आपके स्वास्थ्य को बचाएंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर भारत बनाएंगे। तो आज ही शुरुआत करें—प्लास्टिक को कहें अलविदा और एक स्वस्थ, हरे-भरे भविष्य को गले लगाएँ।
FAQ
DEHP क्या है और यह क्यों खतरनाक है?
DEHP एक रसायन है जो प्लास्टिक को लचीला बनाता है। यह हृदय रोग, कैंसर, और हार्मोनल असंतुलन का कारण बन सकता है क्योंकि यह शरीर में हार्मोन्स और अंगों को प्रभावित करता है।
प्लास्टिक प्रदूषण से भारत में कितनी मौतें होती हैं?
NYU के अध्ययन के अनुसार, 2018 में DEHP से जुड़ी हृदय बीमारियों के कारण भारत में 1 लाख से ज्यादा मौतें हुईं।
क्या सभी प्लास्टिक खतरनाक हैं?
नहीं, PET, HDPE, LDPE, और PP जैसे फूड-ग्रेड प्लास्टिक अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं। लेकिन PDVC, PS, और बिना ISI मार्क वाले प्लास्टिक खतरनाक हो सकते हैं।
DEHP से बच्चों को कैसे बचाएँ?
BPA-मुक्त और उच्च-गुणवत्ता वाले खिलौने चुनें, प्लास्टिक कंटेनर में गर्म खाना न रखें, और सिंगल-यूज प्लास्टिक का उपयोग कम करें।
प्लास्टिक कचरे को कम करने के लिए मैं क्या कर सकता हूँ?
रिसाइक्लिंग को बढ़ावा दें, कपड़े के बैग इस्तेमाल करें, और हमारे Beginner’s Guide to Composting को पढ़कर जैविक कचरे का प्रबंधन सीखें।
More information
UN Environment Programme - Plastic Pollutionप्लास्टिक प्रदूषण के वैश्विक प्रभावों और समाधानों के बारे में और जानें।
Central Pollution Control Board - Plastic Waste Management
भारत में प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन पर आधिकारिक जानकारी।






0 टिप्पणियाँ